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पोला : किसानों का प्रमुख पर्व

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पोला-पिठोरा मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। भाद्रपद कृष्ण अमावस्या को यह पर्व विशेषकर महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है। 

पोला त्योहार मनाने के पीछे यह कहावत है कि अगस्त माह में खेती-किसान‍ी काम समाप्त होने के बाद इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है यानी धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है।   यह त्योहार पुरुषों, स्त्रियों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। इस दिन पुरुष पशुधन (बैलों) को सजाकर उनकी पूजा करते हैं। स्त्रियां इस त्योहार के वक्त अपने मायके जाती हैं। छोटे बच्चे मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। 

पिठोरी अमावस्या पर पोला (पोरा) पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए चौसष्ठ योगिनी और पशुधन का पूजन किया जाता है। इस अवसर पर जहां घरों में बैलों की पूजा होती है, वहीं लोग पकवानों का लुत्फ भी उठाते हैं। इसके साथ ही इस दिन ‘बैल सजाओ प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जाता है।

पोला पर्व पर शहर से लेकर गांव तक धूम रहती है। जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना होती है। गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुलाकर सजाते हैं, फिर हर घर में उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद घरों में बने पकवान भी बैलों को खिलाए जाते हैं।

बैल किसानों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। किसान बैलों को देवतुल्य मानकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। पहले कई गांवों में इस अवसर पर बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता था, लेकिन समय के साथ यह परपंरा समाप्त होने लगी है। इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। पर्व के 2-3 दिन पूर्व से ही बाजारों में लकड़ी तथा मिट्टी के बैल जोड़‍ियों में बिकते दिखाई देते हैं। बढ़ती महंगाई के कारण यह अब करीबन 50 से 100 रुपए तक की जोड़ी में बेचे जाते हैं। इसके अलावा मिट्टी के अन्य खिलौनों की भी भरमार बाजारों में दिखाई देती‍ है।  यह त्योहार दरअसल कृषि आधारित पर्व है। वास्तव में इस पर्व का मतलब खेती-किसानी, जैसे निंदाई, रोपाई आदि का कार्य समाप्त हो जाना है, लेकिन कई बार अनियमित वर्षा के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। खासतौर पर छत्तीसगढ़ में इस लोक पर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर, पूड़ी जैसे कई लजीज व्यंजन बनाए जाते हैं।  महाराष्‍ट्रीयन परिवारों में पोळा पर्व के दिन घरों में खासतौर पर पूरणपोळी (साटोरी) और खीर बनाई जाती है। बैलों को सजाकर उनका पूजन किया जाता है फिर उन्हें पूरणपोळी और खीर भी खिलाई जाती है। शहर के प्रमुख स्थानों से उनकी रैली निकाली जाती है। जिन-जिन घरों में बैल होते हैं, वे इस दिन अपने बैलों की जोड़ी को अच्छी तरह सजा-संवारकर इस दौड़ में लाते हैं। इस पूजन के बाद माताएं अपने पुत्रों से पहले ‘अतिथि कौन?’ इस तरह पूछती है और पुत्र अपना नाम माता को बताते हैं, उसके बाद ही पूरणपोळी और खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के साथ-साथ खंडवा तथा अन्य कई स्थानों पर मनाए जाने वाले इस लोक पर्व का नजारा देखने में बहुत ही खूबसूरत दिखाई देता है। मोती-मालाओं तथा रंग-बिरंगे फूलों और प्लास्टिक के डिजाइनर फूलों और अन्य आकृतियों से सजी खूबसूरत बैलों की जोड़ी हर इंसान का मन मोह लेती है। भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पोळा पर्व कई समाजवासी बहुत ही उत्साहपूर्वक मनाते हैं। बैलों की जोड़ी का यह पोळा उत्सव देखते ही बनता है।  इस अवसर पर बैल दौड़ और बैल सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें अधिक से अधिक किसान अपने बैलों के साथ भाग लेते हैं। खास सजी-संवरी बैलों की जोड़ी को इस दौरान पुरस्कृत भी किया जाता है।

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