महुआ का पुष्पणकाल 2-3 महीनों तक चलता है जो मार्च अप्रैल के महीने में आता है। इस दौरान पूरे दिन इसके ऊंचे-ऊंचे पेड़ों से उनके फूल झड़ते रहते हैं। फीके से पीले रंग के ये फूल मुह के बल जमीन पर गिरे हुए होते हैं जिन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी ने जमीन पर कालीन बिछा दी हो। अगर आप जंगलों में जाए तो वहाँ पर ये फूल आपको सूखे पत्तों पर गिरे हुए मिलेंगे जो अपने आप में सुंदर आकृतियाँ निर्मित करते हैं।
इन दिनों पुरुष, महिलाएं और बच्चे सभी अपनी-अपनी टोकरियाँ लेकर घर से निकलते हैं और पूरा दिन महुआ के फूल इकट्ठा करने में व्यस्त रहते हैं। वे सिर्फ दोपहर के मध्यांतर के दौरान खाना खाने के समय ही थोड़ा आराम करते हैं और अपनी टोकरियाँ खाली करके फिर से फूल इकट्ठा करने चले जाते हैं। यहाँ की सड़कों से गुजरते हुए आप लोगों को फूलों से भरी टोकरियाँ लेकर रास्ते पर चलते हुए देख सकते हैं। इनके साथ छोटी-छोटी लड़कियां भी होती हैं, जो अपनी छोटी सी टोकरियाँ लेकर फूल इकट्ठा करती हुई नज़र आती हैं।
रात के समय इन पेड़ों के आस-पास गिरे सूखे पत्तों को जलाया जाता है, ताकि अगली सुबह इस काली राख पर बिखरे पीले फूलों को इकट्ठा करने में आसानी हो, नहीं तो हो सकता है कि उन पत्तों की आड़ में कुछ फूल उनकी नज़र से छूट जाए।
मध्य भारत एवं छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों में महुए के पेड़ को बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस वृक्ष के लगभग सभी भाग मनुष्य के लिए उपयोगी होते हैं। इसकी छाल में औषधीय गुण होते हैं। इसके बीज से उर्वरक बनाया जाता है और उससे निर्मित तेल ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल को साबुन इत्यादि बनाने के उपयोग में भी लाया जाता है।
महुआ का वैज्ञानिक नाम मधुका लोंगफोलिआ है । इसका एक वृक्ष साल भर में २०० किलो तक तेल दायक बीज दे सकता है। महुआ के पत्ते टसर सिल्क का रेशा बनाने वाले कीटों को खिलाये जाते हैं।